एक शेर का बच्चा जगंल में भेड़ के बच्चे के भीड़ में मिल गया और फिर वही वह बड़ा हुआ तो उसका रहन-सहन भी भेड़ के जैसे ही हो गया।
फिर एक दिन भेड़ के भीड़ में एक शेर ने दूसरे शेर को देखा तो चकित हुआ कि ऐसे कैसे हो सकता है❓
फिर जब उसने दहाड़ मारी तो सारे भेड़ भागने लगे साथ मे वह शेर भी जो बचपन मे मिल गया था। तब दूसरे शेर ने उसे घेर लिया और फिर उसे एक तालाब के पास ले गया और फिर उसे उसकी तस्वीर दिखाई तो भेड़ वाला शेर देखा की उसका चेहरा ओर जो शेर उसे लेकर आया उसका चेहरा मिल रहा है। फिर उसी तरह दहाड़ना सीखा।
आज मानव अपने मूल स्वरूप को भूलकर जानवरो जैसे जीवन जीता है बस वही खाया-पिया, बच्चे जन्म देना,रोना-धोना आदि। हमारे देवता भी मानव तन की प्राप्ति के लिए लालायित रहते है किसलिए ताकि वे भी जानवरो जैसे जीवन जिए❓🙏🏻
नही। बल्कि मानव ही एक ऐसा योनि है जो भटकती हई आत्मा के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकती है। लेकिन अज्ञानी मानव बस भोग-विलास में जीकर अपने मूल स्वरूप को ही नही जान सकता है।
जैसे-- एक शेर ने जब देखा कि एक दूसरा शेर भेड़ के साथ भेड़ जैसी जिंदगी जी रहा है तो उसने उसके स्वरूप से परिचित करवा दिया। उसी तरह-- जब तत्ववेत्ता संसार में आते है तो वे अज्ञान में जी रहे मानव को देखते है तो मानव को मानव के स्वरूप से परिचित करवाते है तभी मानव कहलाने के काबिल होते है। तभी तो हमारे वेदों में कहा गया है-- मनुर्भव: मनुर्भवः--- अर्थात मनुष्य बनो! मनुष्य बनो।
मानव का शरीर मिला है इसका मतलब ये नही की मानव के गुण प्रकट हो गए है। मानव बनने के लिए पहले ब्रह्मनिष्ठ तत्ववेत्ता की शरण में जाए। जो आपके मूल स्वरूप ईश्वर का दर्शन करवा कर आपके शक्ति का परिचय देंगे जिससे आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाएंगे।
🕉-- क्या आपको ऐसे ब्रह्मनिष्ठ तत्ववेत्ता मिले जो आपके भीतर ईश्वर का दर्शन करवा दिए हो तत्क्षण❓
मूलस्वरूप परमात्मा का दर्शन करने के बाद ही पता चलेगा। 🚩🙏🏻
अब आप कैसे जीवन जीना चाहते है भोग-विलास जानवरो की तरह या ब्रह्मनिष्ठ तत्ववेत्ता की शरण मे जाकर स्वयं को जानकर अपना लक्ष्य को पाने की। निर्णय आपका अपना क्योंकि जीवन आपका है
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